Diwali Or Dhanteras : धनतेरस और दिवाली भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से हैं, जो न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा हैं। यह त्योहार विशेष रूप से रोशनी, समृद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है। दिवाली का पर्व पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें सबसे पहला दिन ‘धनतेरस’ के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2024 में, धनतेरस 30 अक्टूबर को मनाया जाएगा और दिवाली का मुख्य पर्व 1 नवंबर को मनाया जाएगा। इस लेख में हम धनतेरस और दिवाली के बारे में विस्तार से जानेंगे।

Dhanteras धनतेरस क्यों बनता है? (धनतेरस का महत्व और पौराणिक कथा)
धनतेरस, जिसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है, दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत का पहला दिन होता है। यह हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। इस दिन धन, समृद्धि और आरोग्य की देवी लक्ष्मी तथा धन्वंतरि की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान इस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है और इस कारण इस दिन को ‘धन्वंतरि जयंती’ के रूप में भी मनाया जाता है।
धनतेरस कैसे बनता है? (धनतेरस की परंपराएं और रीति-रिवाज)
धनतेरस पर विभिन्न रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूप में प्रचलित हैं। इन रीति-रिवाजों में कुछ प्रमुख हैं:
1. धातु की खरीदारी: इस दिन चांदी, सोना या पीतल के बर्तन खरीदने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से घर में समृद्धि और सौभाग्य आता है। आधुनिक समय में लोग इलेक्ट्रॉनिक्स, गहने और अन्य कीमती वस्तुएं भी खरीदते हैं।
2. दीपदान: धनतेरस के दिन दीप जलाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह माना जाता है कि इस दिन दीप जलाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
3. धन्वंतरि की पूजा: चूंकि यह दिन भगवान धन्वंतरि के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, इस दिन आयुर्वेदिक औषधियों और स्वास्थ्य की देवी धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
4. धनलक्ष्मी पूजन: धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजन भी किया जाता है, जिसमें परिवार के सदस्य मिलकर लक्ष्मी जी की आराधना करते हैं और उनसे समृद्धि की कामना करते हैं।
दिवाली का महत्त्व
दिवाली का पर्व हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे ‘रोशनी का पर्व’ भी कहा जाता है, जो बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। दिवाली के दिन भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया था।
धनतेरस कब है ? (दिवाली के पाँच दिन)
1. धनतेरस (30 अक्टूबर 2024): इस दिन धन और आरोग्य की देवी लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।
2. नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली (31 अक्टूबर 2024): इस दिन को नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने मारा था। इसे ‘रूप चौदस’ भी कहा जाता है, जिसमें लोग सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और खुद को सजाते-संवारते हैं।
3. दिवाली (1 नवंबर 2024): इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्त्व है। लोग अपने घरों को दीपों, मोमबत्तियों और रंगोलियों से सजाते हैं। रात्रि को देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है और मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं।
4. गोवर्धन पूजा (2 नवंबर 2024): यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा से जुड़ा है, जब उन्होंने इंद्रदेव के क्रोध से ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
5. भाई दूज (3 नवंबर 2024): इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं। भाई दूज भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है।
दिवाली केसे बनती है ? (दिवाली के रीति-रिवाज और परंपराएं)
1. लक्ष्मी-गणेश पूजा: दिवाली के दिन लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा का विशेष महत्त्व होता है। लक्ष्मी जी को धन की देवी और गणेश जी को शुभता के देवता के रूप में पूजा जाता है।
2. दीप जलाना: दिवाली के दिन दीपक जलाने की परंपरा से पूरा वातावरण प्रकाशमय हो जाता है। यह मान्यता है कि दीप जलाने से अंधकार का नाश होता है और जीवन में उजाला आता है।
3. मिठाई और उपहार का आदान-प्रदान: दिवाली के अवसर पर लोग मिठाइयाँ और उपहार एक-दूसरे को देकर अपनी खुशी और शुभकामनाएँ साझा करते हैं।
4. रंगोली बनाना: दिवाली पर रंगोली बनाना शुभ माना जाता है। यह माना जाता है कि रंगोली से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और देवी लक्ष्मी का स्वागत होता है। 5. **पटाखे चलाना**: पटाखों के बिना दिवाली अधूरी मानी जाती है। हालाँकि, आजकल बढ़ते प्रदूषण के कारण लोग कम से कम पटाखे चलाने का प्रयास कर रहे हैं।
दिवाली की तैयारी कैसे करे ?
दिवाली से पहले लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, क्योंकि माना जाता है कि देवी लक्ष्मी साफ-सुथरे घरों में ही प्रवेश करती हैं। लोग नए कपड़े, मिठाइयाँ और सजावट के सामान खरीदते हैं। घरों को दीपों, मोमबत्तियों और लाइटों से सजाया जाता है ताकि चारों ओर उजाला हो सके।
दिवाली का आर्थिक महत्त्व
दिवाली का पर्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस समय व्यापार में वृद्धि होती है और बाजारों में खरीदारी की भारी भीड़ होती है। लोग सोना-चांदी, गहने, इलेक्ट्रॉनिक्स, और कपड़े जैसी चीजें खरीदते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में भी उछाल आता है।
आधुनिक युग में दिवाली का स्वरूप
समय के साथ दिवाली के उत्सव का स्वरूप भी बदला है। अब लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो गए हैं और पटाखों के स्थान पर दीयों और मोमबत्तियों से दिवाली मनाने लगे हैं। इलेक्ट्रॉनिक लाइटों का भी प्रचलन बढ़ा है। इसके अलावा, कई लोग दिवाली पर जरूरतमंदों की सहायता करने का भी प्रयास करते हैं, ताकि उनके जीवन में भी उजाला और खुशी आ सके।
दिवाली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व
दिवाली का पर्व न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस त्योहार के माध्यम से लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, पुरानी कड़वाहट को भूलकर रिश्तों में मिठास लाते हैं और सामाजिक एकता का संदेश देते हैं। यह त्योहार सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोगों को एकजुट करता है और भाईचारे का संदेश फैलाता है।
दिवाली पर किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
दिवाली पर विशेष ध्यान देने योग्य बातें
1. पर्यावरण संरक्षण: पटाखों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए कम से कम पटाखे चलाएं और दूसरों को भी जागरूक करें।
2. दीप जलाना: दीयों का उपयोग करें, क्योंकि यह पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल है।
3. सुरक्षा का ध्यान: दीपावली के दौरान सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें, खासकर पटाखे चलाते समय बच्चों का ख्याल रखें।
4. दान और सेवा: दिवाली के अवसर पर जरूरतमंदों की मदद करें, ताकि उनकी दिवाली भी रोशन हो सके।
धनतेरस और दिवाली केवल त्योहार ही नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति और परंपराओं का जीवंत रूप हैं। ये पर्व हमें जीवन में सकारात्मकता, समृद्धि और नई शुरुआत का संदेश देते हैं। 2024 में जब हम दिवाली और धनतेरस मनाएं, तो इन त्योहारों के मूल उद्देश्य को समझें और सही अर्थों में उनका पालन करें। यह हमारे जीवन को न केवल रोशन करेगा, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा।
धनतेरस कब है?
30 OCTOBER
दिवाली कब है?
1 NOVEMBER
गोवर्धन पूजा कब है?
2 NOVEMBER
भाई दूज कब है?
3 NOVEMBER